प्रिय भारतवासियों, नोटबंदी भाग 2 की घोषणा हो चुकी है। जिस उद्देश्य के लिये नोटबंदी थोपी गई थी वह केन्द्र के अनुसार पूर्ण हो चुका है। अर्थात जिस काले धन के लिये नोटबंदी की गई थी वह कालाधन सरकार के पास आ चुका है। बस थोड़ी सी प्रतीक्षा की व धैर्य दिखाने की जरूरत है जिसमें आप पारंगत हैं। बहुत जल्दी ही आपको सरकारी कारिंदे 10-15 लाख रूपये घर-घर बाँटते दृष्टिगोचर होंगे। अब केन्द्र सरकार दावे के साथ कह सकेगी कि हम सिर्फ जुमलेबाजी ही नहीं करते हैं बल्कि काला धन सचमुच में देश हित में खपा भी सकते हैं। जब तक आपको 10-15 लाख नहीं मिलते हैं तब तक आपको बताया जा चुका है कि आपको क्या करना है। आप तो बस केन्द्र सरकार या सीधा यूँ कहें कि वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सुझाये गये उपाय करते रहिये आपका जीवन सफल होगा उदाहरणार्थ :- पकौड़े तलकर बेचना, चाय बेचना, गैस की जरूरत पड़े तो बेझिझक गंदे नाले में पाइप डालकर गैस बनाना इत्यादि। अगर ज्यादा समय लगे तो लगे हाथ चार साल सेना में घूमकर आ जाइये। आम के आम और गुठलियों के दाम। जब तक आप सेना से वापस आ जायेंगे तब तक आपके घर काला धन भी वितरित कर दिया
यह कहानी आपसी विश्वास, मानवीय ह्रदय परिवर्तन व मातृभूमि के लिये अपने आपसी मतभेद भूलकर एकजुट होकर शत्रु को पराजित करने की है। जैसा आप फिल्मों में भी देखते हैं। इस कहानी के मुख्य पात्र एक राजा व एक विद्रोही हैं। लेखक ने बड़े ही सजीवता पूर्ण तरीके घटना का चित्रण किया है। आप स्वयं को एक किरदार की तरह कहानी में उपस्थित पायेंगे। एक राजा था एक विद्रोही था। दोनों ने बंदूक उठाई – एक ने सरकार की बंदूक। एक ने विद्रोह की बंदूक।। एक की छाती पर सेना के चमकीले पदक सजते थे।। दूसरे की छाती पर डकैत के कारतूस।। युद्ध भी दोनों ने साथ-साथ लड़ा था। लेकिन किसके लिए ? देश के लिए अपनी मिट्टी के लिये, अपने लोगों के लिए मैंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि "म्हारा दरबार राजी सूं सेना में गया और एक रिपयो तनखा लेता" इस कहानी के पहले किरदार हैं जयपुर के महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह राजावत जो आजादी के बाद सवाई मान सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी हुए। दूसरा किरदार है, उस दौर का खूँखार डकैत बलवंत सिंह बाखासर। स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों और ठिकानों का विलय हुआ तो सरकार से विद्रोह कर सैकड़ों राजपूत विद्रोही